आंखों पर पट्टी बांधकर चायनीज़ बनाते हैं, जिन्हें इंदौरी ज़ेक स्पेरौ कहा जाता है। – अजय गुप्ता 

खाना तो हम सभी ने बनते हुए देखा होगा या हममें से बहुत से लोग खाना बनाते आ रहे हैं। सालों के अनुभव के बाद भी कोई कहे कि आंखों पर पट्टी बांधकर खाना बनाना है तब भी यह बात संभव नहीं लगती है। 

खाना बनाने में सभी की अपनी-अपनी तकनीक होती है जो हर किसी के खाने को अलग पहचान दे जाती है।

    लेकिन आपने बेहद कम उम्र के नौजवान को आंखों पर पट्टी बांधकर एक दम सधा हुआ चायनीज़ बनाते हुए शायद नहीं देखा हो, फिर भी यदि आप इंदौर की सड़कों पर ऐसे किसी युवा को देखते हैं तो समझ जाइए कि वे अजय ही हैं, इन्हें इंदौरी “ज़ेक स्पेरौ” भी कहा जाता है।  जिनके जीवन से जुड़े किस्से आज हम आपको बताने जा रहे हैं। 

 आज कुछ अलग खोजने की चाह में। हम मिले इंदौर के अजय से ,जिनकी मुलाकात हम आपसे भी करवाने जा रहे हैं। इनकी महारथ आंखों पर पट्टी बांधकर चायनीज़ बनाने में है। यह एक दो दिन की प्रैक्टिस नहीं बल्कि सालों की तपस्या का परिणाम ही है।

     ना मसाला कभी ज़्यादा होता है ना ही कम। ना ही कुछ गडबड़ी होती है एक दम परफेक्ट चायनीज़ बनाने की आदत हो चुकी है। 

हमसे बातचीत के दौरान अजय ने बताया कि उनके परिवार में उनकी माताजी व एक भाई है, परिवारजनों की आर्थिक स्थिति बेहद ही नाज़ुक रही है। अजय का जन्म 27 मार्च 1998 को इंदौर में हुआ। पिताजी मजदूरी किया करते थे, परिवार में समस्या बहुत ही विकट थी। तो अजय ने लगभग 12 से 13 साल की उम्र में ही कपड़ों की दुकान पर और चाय की होटल पर काम करना शुरू कर दिया था।

कुछ साल  दुकान पर काम करके घर के हालातों को सुधारने की कोशिश की पर परिणाम वहीं के वहीं ही थे।

       अजय ने कुछ ओर करने की सोची पर कुछ समझ नहीं आ रहा था क्योंकि उम्र कम थी 9वीं तक ही पढ़ाई की । 

“जिन बच्चों को बचपन नहीं मिलता, खेलने को खिलौने नहीं मिलते, वे वक्त के साथ कब बड़े हो जाते हैं समझ ही नहीं आता।”

ऐसा ही कुछ अजय के साथ हो रहा था अब अजय ने इंदौर से दिल्ली जाकर कुछ चंद पूंजी से बर्गर और मंचूरियन का स्टाॅल शुरु किया। कुछ समय में ही वह स्टाॅल बढ़िया चलने लगा था, लोगों को स्वाद व शुद्धता सभी कुछ समझ आने लगा था, अजय के पास थोड़ी बचत होने लगी थी। 

पारिवारिक मजबूरी की वजह से फिर अजय को इंदौर ही आना पड़ा। जब ये इंदौर वापस आए उस वक्त इनका मकान किन्हीं वजहों से टूट गया था और काम भी नहीं था। 

तब सभी ने कहा कि तुम दिल्ली में जो चायनीज़ बनाकर बेचते थे तो यहाँ भी तुम यही शुरू कर दो। अजय ने भी मन बना लिया था लेकिन चायनीज़ का स्टाॅल आजकल हर कहीं देखने को मिल जाता है यही सोचकर अजय के मन में संशय था। 

    अजय बताते हैं कि मेरा कहीं ना कहीं मन बैचैन था कि परिणाम क्या होगा पर गहन विचार करने पर लगा कि दुनिया में इतने लोग कमा रहे हैं यदि हर कोई ऐसा ही सोचे तो वह कुछ नहीं कर सकता। बस यही इंदौर में नए हुनर को देने की शुरुआत थी। 

अजय के पास अब 11 सालों से चायनीज़ बनाने का अनुभव हो चुका है और कुछ सालों से ये कुछ अलग करने की चाह में आंखों पर पट्टी बांधकर चायनीज़ बनाने लगे हैं। लोग इनका यही हुनर देखकर इनके स्टाॅल पर आते हैं अब अजय का स्टाॅल, शाॅप में परिवर्तित हो चुका है। 

अजय ने बचपन में ही अपने जीवन की शुरुआत एक संघर्ष के साथ शुरु कर दी थी, जिसमें अनेकों बुरी परिस्थितियों ने परखा, घर टूट जाना, पिता का साया बचपन में उठ जाना, परिवार में आर्थिक संकट, कोरोना के समय लाॅकडाउन ऐसी कई बुरी परिस्थितियों से लड़कर आज इनके जीवन में उन्नति व सुख आ रहा है। 

इंडिया के सबसे बड़े फूड शो मास्टरशेफ इंडिया में भी अजय ने भाग लिया था जिसमें ये मुंबई ऑडिशन तक पहुंचें थे उससे आगे तक तक सफर तय नहीं कर पाए। अब तक अजय के पास भारत के बड़े- बड़े फूड ब्लॉगर आ चुके हैं जिनके कई विडियो में अजय नजर आते हैं। हमें विश्वास है कि अजय अपने हुनर व अनोखी प्रतिभा के साथ हमारे देश व सभी का नाम रोशन करेंगें। 

अजय से बातचीत के दौरान हमने जाना कि समय के साथ यदि किसी भी चीज़ में मन लगा लिया जाए तो मुश्किल काम भी आसान और सरल हो जाता है।

हम अजय के सुनहरे भविष्य के लिए हमारी टीम “अपनी पहचान” उन्हें हार्दिक शुभकामनाएँ व बधाईयाँ देती है अजय का भविष्य उज्जवल हो व उन्हें कामयाबी की राहें प्राप्त हो तथा वे देश का नाम रोशन करें।

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