कहा जाता है, की एक सपना टूटने के बाद फिर एक सपना देखना ओर उसे पूरा करना ही, जिंदगी का सफर कहलाता है।
ऐसे ही एक सफर की कहानी हमारे साथ है, जिन्होंने क्रिकेटर बनने का सपना देखा, सपना पूरा होने के अंतिम पड़ाव पर लगी चोट के कारण वह सपना तो चूर हो गया था, पर दुसरों को हिम्मत देने के लिए ये कोच बन गए।
अतुल त्यागी जिनका जन्म गाजियाबाद उत्तरप्रदेश में 5 अक्टूबर सन् 1987 को हुआ।
इनकी माताजी को क्रिकेट से बहुत लगाव था, ओर वे बचपन से ही अतुल को क्रिकेटर बनाने का सपना देखने लगी थी, पर वे क्रिकेटर के साथ इनकी पढ़ाई के लिए भी हमेशा सजग रहती थी
लगभग 12 साल की उम्र में अतुल ने स्कूल की क्रिकेट एकेडमी ज्वाइन कर ली थी, व अब ये क्रिकेट सीखने लगे थे, स्कूल मैदान ही इनका पहला क्रिकेट स्टेडियम हुआ करता था।
स्कूल क्रिकेट खेलते समय जब ये ट्राॅफी जीतते तब इनका दिन प्रतिदिन क्रिकेट के लिए ओर लगाव बढ़ने लगा था, जीता जागता सपना यही बन गया था। रोज घंटों की प्रेक्टिस इनकी माताजी ओर इनके सपनों को पूरा करने का शुरुआती दौर था।
रोज स्कूल जाना, फिर वहीं पढ़ाई के बाद रोज लगातार घंटों प्रेक्टिस किया करते थे।
गाजियाबाद में कुछ सालों खेलने के बाद, चयन प्रक्रियाओं के साथ ही इनका चयन दिल्ली की एक सरकारी क्रिकेट एकेडमी में हो गया था।
जब इनके कोच इन्हें क्रिकेट सीखाते थे, उन्हें देखकर इन्हें लगता कि, मुझे भी आगे जाकर भविष्य में कोच बनना चाहिए। प्रतिदिन ये गाजियाबाद से दिल्ली तक का सफर बस या ट्रेन से तय किया करते थे।
स्कूल से आना, सफर कर दिल्ली तक जाना, वहाँ तीन से चार घंटों की प्रेक्टिस करना फिर वापस गाजियाबाद आना, इनकी दिनचर्या का एक हिस्सा बन गया था।
सपनों के आगे यह संघर्ष फीका लगता था।
घर परिवार की जिम्मेदारी को भी निभाना जरुरी था, उतना ही जरुरी पढ़ाई ओर क्रिकेट की तरफ ध्यान देना भी था।
पढ़ाई पर ध्यान देना जरुरी था, क्योंकि बिना पढ़ाई किये आगे बढ़ने का रास्ता साफ नहीं था।
अब तक ये कुछ प्रेक्टिस के साथ प्रायवेट एकेडमी के साथ भी टूर्नामेंट खेलने लगे थे, डिस्ट्रिक लेवल पर, स्कूली नेशनल लेवल पर भी इनका नाम होने लगा था, आने वाले भविष्य का यह एक उजला सितारे की तरह चमकने को तैयार होने लगे थे।
नाम और अच्छी पहचान मिलने लगी थी, पारिवारिक स्थिती इतनी अच्छी नहीं थी, कभी यात्रा बिना टिकट के भी कर लिया करते थे, तो कभी हालातों से लड़कर हंसते हुए चल लिया करते थे।
अब लगभग सन् 2014 के समय इनके आसपास के बच्चों को किक्रेट सीखाने में लगे, ओर अब इनका मन बच्चों के लिए ज्यादा झुकने लगा था।
इनका सपना कोच बनने का पूरा होने लगा था।

अब ये टूर्नामेंट प्लेयर के साथ बच्चों के क्रिकेट कोच बन चुके थे, जिससे इन्हें खुशी के साथ वहाँ से आमदानी भी होने लगी थी। तब इनके लगातार प्रदेश व विदेश के टूर होते रहते थे।
कुछ सालों तक इन्होंने दिल्ली क्रिकेट लीग हो या मुम्बई क्रिकेट लीग हो सभी का हिस्सा बनकर टीम का मजबूती से साथ देते रहे हैं।
उसी बीच परिवार की जिम्मेदारियों को पूरा किया करते, आर्थिक स्थिति से लड़ते हुए, खुद के सपनों को पूरा करने की जिद्द सामने थी।
सभी सही चल रहा था, परंतु किस्मत ने नया मोड़ ला कर सामने रख दिया था, उसी साल सन् 2014 में इनको खेलते वक्त चोट लग गई, ज्यादा चोट लगने की वजह से ये क्रिकेट से कुछ समय के लिए दूर हो गए थे, परंतु इन्होंने कोच की जिम्मेदारियों को पूरी तरह निभाया।
बच्चों को सीखाना, उनके साथ समय व्यतीत करना, इन्हें उस तकलीफ पर मरहम का काम करता था, बच्चे इनका सहारा ओर हिम्मत का एक जरिया बनने लगे थे।
बस तब इनके मन में यही लगता, कि यदि वापस खेल जगत में नहीं जा पाएं, तब कम से कम बच्चों का भविष्य उज्जवल देखकर, अपना सपना उनमें पूरा होते हुए देख लेंगें।
एक साल इन्हें उस चोट से उभरने में लग गया, वह समय इनके जीवन का सबसे कठिन व संघर्ष के साथ बीता, आर्थिक स्थिति फिर खराब होने लगी थी, सबकुछ समेटा हुआ इस आंधी में बिखरने लगा था।
इनके दोस्तों, परिवार वालों के प्यार ओर अपनेपन के साथ अब ये धीरे-धीरे ठीक होने लगे थे, समय लग रहा था, पर हालात ठीक होने लगे थे।
वापस क्रिकेट का मैदान इनका इंतजार कर रहा था, मनोबल ओर वापस हिम्मत जुटाकर ये दोबारा खेलने लगे।
अब कॅरियर में उतार – चढ़ाव शुरु होने लगे थे, पर ये प्रायवेट एकेडमी क्रिकेट पर ज्यादा ध्यान देने लगे थे।
लगातार सन् 2014 से लेकर सन् 2020 तक इन्होंने एक सफल कोच की भूमिका को निभाया है।
कोरोना के समय विराम लगा, अभी फिर अतुल बच्चों के साथ जुट गए हैं, खुद की प्रेक्टिस ओर बच्चों की प्रेक्टिस में।
वेलियंट क्रिकेट लीग का भी ये हिस्सा रहे हैं, विपुल नारीगरा के विश्व रिकॉर्ड के समय इन्होंने मैदान में उनके साथी की भूमिका को निभाया है।
अतुल बताते हैं, कि उनके पिता श्री सुधीर त्यागी ने व इनके पूरे परिवार ने हमेशा इनके सपनों के लिए साथ दिया है।
इनकी परवरिश सामान्य परिवार में, पैसों की तंगी के बीच हुई है, स्कूली शिक्षा, व काॅलेज की पढ़ाई इनकी सरकारी संस्थाओं से हुई है।
जब ये शुरूआत में दिल्ली व गाजियाबाद का सफर तय करते थे, तब कभी टिकट के पैसे ना होने पर बिना टिकट के सफर करते तो कभी स्कूल से आकर भूखे – प्यासे एकेडमी के लिए निकल जाया करते थे। कभी समय मिलता तो टिफिन लेकर जाते, बस या ट्रेन में खाना खा लेते थे।
घर की जिम्मेदारी जो हमेशा से साथ रही है, उसके लिए दिन रात भागदौड़ करते रहते थे, वे यह सोचते थे कि जब परिवार अपना है, तो उनकी जिम्मेदारी भी अपने सपनों से ज्यादा जरुरी हो जाती है।
जब अतुल को चोट लगी, तब ये हारने लगे थे, पर गुरु बनकर जिन बच्चों की जिम्मेदारी साथ थी, उनके सामने कभी हारा हुआ, व्यक्ति नहीं बनना चाहते थे।
यही कुछ बातें इनके सही होने में योगदान देती रही, जब से ये कोच बने हैं, तबसे ये अच्छा इंसान बनने की कोशिश करने लगे हैं, क्योंकि ये हमेशा से बच्चों को उनके भविष्य के लिए तैयार करना चाहते थे।
अपना सपना बच्चों में पूरा होने देना चाहते थे, बस अब ये बच्चों के लिए समर्पित होकर उनके उज्जवल भविष्य की मजबूत नींव रखना चाहते हैं।
इनके संघर्षों का परिणाम, इनके द्वारा सीखाया गया क्रिकेट ही बच्चों के लिए सुनहरा भविष्य होगा।