बिहार से आर्टिस्ट बनने निकले अविनाश किन हालातों से लड़ते हुए, आज इंडिया टूडे में अपनी पहचान बना रहे हैं। – अविनाश आर्यन

जिस व्यक्ति में ना हारने का जज्बा ओर निजी समय में से समय बचाकर समय का उपयोग करने की प्रतिभा हो। 

     ऐसे व्यक्ति से कामयाबी कभी दूर नहीं रह सकती है, मुश्किलों से लड़ना ओर जैसा भी समय आए। उसमें भी मुस्कुराते हुए जीना आसान नहीं होता है। 

बिहार का एक लड़का जो आर्टिस्ट बनने का सपना लिए, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से पढ़ाई करना चाहता था। 

पर हालातों के साथ समझौता कर वह 

नौकरी की तरफ चला गया। 

दिन रात मेहनत की ओर समय ऐसा बदला, कि यह आज भारत की प्रतिष्ठित मीडिया कम्पनी इंडिया टूडे की वेबसाइट लल्लनटाॅप के लिए काम कर रहे है। 

हम बात कर रहे हैं, अविनाश आर्यन जी की जिनका जन्म 23 नवंबर सन् 1996 को सहरसा बिहार में हुआ। 

इनकी स्कूल की पढ़ाई इनके गृह नगर से ही हुई, माताजी (स्व. श्रीमती अंजूदेवी) आंगनबाड़ी में कार्यकर्ता थी ओर पिताजी खेतीबाड़ी करते रहे है। 

स्कूल के समय से ही अविनाश को थिएटर, नाटक, मंच से बहुत लगाव हुआ करता था, बड़े होकर ये हीरो ही बनना चाहते थे। 

कलाकारों के लिए उनकी प्रतिभा ही सबसे बड़ा धन होती है, तो ऐसा ही कुछ सपना इनका भी था। 

कक्षा 12 वीं की पढ़ाई करने के बाद दिल्ली जाकर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से अपना भविष्य बनाना चाहते थे। 

स्कूल खत्म करके अविनाश अपना सपना साकार करने के लिए दिल्ली आ गए, इनकी माताजी इनकी पढ़ाई के लिए हर महीने तीन हजार रुपया भेजा करती थी, जो उनकी पूरी तनख्वाह हुआ करती थी। 

इतने कम रुपयों में रहना, खाना, पढ़ाई करना सबकुछ संभव नहीं था, पर बमुश्किल इन्हें गुजारा करना होता था। 

दिल्ली के एक काॅलेज IIMMI में इन्होंने मास कम्यूनिकेशन में प्रवेश ले लिया, चूंकि इन्हें मंच से लगाव पहले से ही था। 

ओर यहां इन्हें बोलने का मौका मिलने लगा, क्योंकि मंचों को संभालने की प्रतिभा तो इनमें पहले से ही थी। 

काॅलेज में शुरूआत का पहला साल तो अच्छे से निकल गया, दिल्ली में अच्छे से रहने लगे, पढ़ाई में मन लगने लगा था। 

अब आया काॅलेज का दूसरा साल यानि सन् 2015 ओर 2016 का समय जब इनकी माताजी की तबीयत अचानक से बिगड़ने लगी, स्थिती बहुत खराब होने लगी, क्योंकि इनकी पढ़ाई ओर रहने का खर्च माताजी ही भेजा करती थी। 

अब अविनाश के सामने दो स्थितियां थी, एक अपनी मम्मी के पास रहकर उनका ख्याल रखे, या अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे कर भविष्य की ओर आगे बढ़े। 

इन्होंने मम्मी के पास रहकर उनका पूरा ध्यान रखा, उनकी सेवा की परंतु कुछ समय बाद ही इनकी माताजी का देहांत हो गया। 

अब ये माताजी के बिना अधूरे हो गए थे, ओर पढ़ाई भी खराब हो रही थी, तब ये वापस दिल्ली आ गए। 

ओर अपनी दूसरे साल की पढ़ाई पर ध्यान देने लगे, क्योंकि अब तक पढ़ाई के साथ-साथ खर्च भी देखना होता था,

परिवार की जिम्मेदारी भी साथ थी। 

उस कठिन समय में जब इनका दिल्ली में गुजारा करना मुश्किल हो रहा था, तब इनके मामाजी श्री सुदर्शन कुमार जी ने इनकी बहुत मदद की। 

हौंसला देना, अपनेपन का एहसास करवाना, उस समय इनका सबसे बड़ा सहारा वही थे। 

जब काॅलेज का तीसरा साल आया तब इन्होंने परीक्षा के बाद, अपने खर्च को निकालने के लिए निर्माण विहार नाम की कम्पनी के लिए इंग्लिश कंटेंट लिखना शुरू किया, कुछ महीने नौकरी की ओर बचत करना शुरु कर दिया था। 

कहते हैं, ना किस्मत कब क्या मोड़ ले ले कोई कुछ नहीं कह सकता, अब अविनाश के साथ भी यही हो रहा था। 

एक दिन इंटरनेट चलाते हुए स्पोर्ट्सवाला का विज्ञापन देखा, जिसमें उन्हें स्पोर्ट्स के लिए हिंदी में कटेंट राईटर की जरुरत थी, इनका उसमें चयन हो गया। 

ओर जुलाई सन् 2017 को ये नौकरी करने मुबंई चले गए, लगभग दस महीने वही रहे, नौकरी की। 

नौकरी में जाने के बाद इनकी आर्थिक स्थिति में बदलाव आने लगा, घर पर पैसा भेजने लगे, क्योंकि छोटे भाइयों की जिम्मेदारी इन्हीं पर है, छोटी-छोटी बचत होने लगी थी। 

     सन् 2018 के अप्रैल के समय जब ये किसी काम से दिल्ली आए, तब इन्होंने *वन इंडिया* में इंटरव्यू दिया ओर इनका चयन हो गया। 

     वन इंडिया के स्पोर्ट्स सेक्शन में सीनियर असिस्टेंट प्रोड्यूसर के रुप में काम किया।

उस समय तक इनके हालातों में बहुत तेजी से सकारात्मक सुधार आने लगा था, कॅरियर का ग्राफ भी लगातार बढ़ रहा था। 

   उसी के कुछ समय बाद इन्होंने नौकरी बदल ली, ओर इंडिया फेंटेंसी डाॅटकाॅम में आ गए। 

नौकरी से कुछ बदलाव के लिए इन्होंने रेस्टोरेंट भी शुरु किया, लेकिन कुछ महीनों बाद कोरोना की वजह से बंद कर दिया। 

         फिर ये वापस वन इंडिया में आ गए थे, ओर अपना स्पोर्ट्स का काम संभालने लगे, और लगतार यही काम किया। 

अविनाश अब भारत के एक प्रतिष्ठित  ग्रुप इंडिया टूडे की वेबसाइट लल्लनटाॅप के लिए काम कर रहे हैं।

       अविनाश का कहते हैं, कि कामयाब होना तो आसान है, पर जब नाकामयाबी मिलती है, उसे बर्दाश्त करना बहुत मुश्किल होता है।* 

        ये बताते हैं, कि अपने काम से बेइमानी कभी नहीं करना चाहिए, क्योंकि जो काम के लिए ईमानदार नहीं है, वह कैसे सफल हो सकता है। 

बीस से तीस साल तक की उम्र में ना तो हारना चाहिए, ना ही रुकना चाहिए, ओर ना ही थकना चाहिए। 

          क्योंकि कामयाबी का स्वाद चाहिए, तो नाकामयाबी के घूंट भी उतारना सीख लेना चाहिए।

ये एक बेहतरीन लेखक भी है, जिन्हें पढ़ना ओर समझना अच्छा लगता है।

        अपनी माताजी की यादों को साझा करते हुए अविनाश उनकी सीख, बातों को बताते हैं, वे कहती थी, कि कहीं मन या लगन ना लगे पर हमारा काम है, जिम्मेदारी है, तो उसे अपनी इच्छा से ज्यादा कर्तव्य मानकर पूरा करें।

      क्योंकि मन भटकता रहता है, परतुं कर्तव्यों का निर्वहन करना, हमारा सबसे बड़ा धर्म होता है।

      टीम अपनी पहचान अविनाश जी के उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए, उन्हें शुभकामनाएँ देती हैं।

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