आर्थिक स्थिति, फिर कैंसर से जीतकर नीलम कैसे कर रही है, शैक्षणिक संस्थान का संचालन – नीलम शर्मा

ऐसा कहा जाता है, कि शिक्षा ऐसा धन है, जो हमेशा हर समय काम आता है। जितना इस धन को जितना बांटा जाता है, उतना ही अधिक बढ़ता जाता है।

मुसीबत के समय यदि शिक्षा का सदुपयोग कर उस का विकास करने का प्रयत्न किया जाए तो वही शिक्षा दान सफलता की कुंजी बन जाती है। 

हम बात कर रहे हैं, रतलाम मध्यप्रदेश निवासी श्रीमती नीलम शर्मा जी की। जिन्होंने कठिन परिस्थितियों में शिक्षा के क्षेत्र में जाने का निर्णय लिया और सफलता प्राप्त की। 

नीलम जी जिनका जन्म, परवरिश, शिक्षा और विवाह रतलाम में ही हुआ। सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार में इनका बचपन बीता ओर इन्होंने अपनी पढ़ाई एमए इंग्लिश में पूरी की। 

पढ़ाई के बाद सन् 1983 में इनकी शादी रतलाम निवासी श्री दिनेश जी शर्मा से हो गई। शादी के बाद संयुक्त परिवार में रहते हुए इनका समय बीता। एक समय तक सबकुछ ठीक चल रहा था, पर सन् 1995 के करीब दिनेश जी के व्यापार में बहुत ज्यादा हानि होने लगी। जिसकी वजह से परिवार की आर्थिक स्थिति में बहुत ज्यादा अस्थिरता आ गई थी। 

परिवार और दो बच्चों की जिम्मेदारी के साथ इन्होंने एक किराये के मकान में रहना शुरु किया। उसी दौरान इन्होंने सोचा ” कि जब मैं इतनी साक्षर हूँ, तो क्यों ना शिक्षा के क्षेत्र में विकास किया जाए।” ओर इन्होंने यही सोच कर स्कूल शुरु करने के विचार को परिवार के सामने रखा व परिवार वालों की सहमति के साथ अपनी पारिवारिक भूमि पर सन् 1999 में स्कूल की नींव रखी।

उस समय आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी, तो बैंक से ऋण लेकर ओर ऐसे ही कुछ रुपयों की व्यवस्था कर स्कूल निर्माण का कार्य आंरभ किया। शुरूआती वक्त में निर्माण, फिर स्कूल की मान्यता, और उसके संचालन को लेकर कई परेशानीयों का सामना किया। 

मेहनत व लगन से काम किया तो यह सभी काम भी समय के साथ होते गए। व सन् 2000 के समय स्कूल का निर्माण कार्य पूरा हो कर स्कूल का आरंभ हुआ जिसका नाम सन एन शाईन रखा। जिसको मान्यता एमपी बोर्ड से मिली व जिसका संचालन अंग्रेज़ी व हिन्दी दोनों माध्यमों में शुरु हुआ।

पहले स्कूल मीडिल स्कूल तक हुआ करता था, फिर समय के साथ हाई स्कूल ओर अब हायर सेकंडरी तक की मान्यता प्राप्त हो गई है। और स्कूल का संचालन व्यवस्थित रुप से होने लगा। 

नीलम ने सबसे पहले अपने स्कूल में ऐसी जरूरतमंद महिलाओं को नौकरी देना जरूरी समझा, जिन्हें नौकरी की आवश्यकता है। साथ ही ऐसे बच्चों को भी शिक्षित करना शुरु किया जिनके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। कुछ बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दी तो कुछ के लिए आधी फीस माफ करके उन्हें शिक्षित किया, पर इनका एकमात्र उद्देश्य सभी बच्चों को शिक्षा देने का रहा। 

शुरुआत के दौर में एक साथ इतना कुछ संभालना मुश्किल होता था। जिसमें परिवार, बच्चें स्कूल ओर सभी जिम्मेदारी को व्यवस्थित रुप से चलाया है, व इन्होंने पढ़ाई की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया है, 

घर व स्कूल की जिम्मेदारियों को नीलम बहुत अच्छे से संभालने लगी थी, वक्त के साथ इनके पति के व्यापार में भी स्थिरता आने लगी, ओर इन्होंने अपने परिवार के लिए घर बनाने का सोचा और उस घर का निर्माण करवाने की शुरुआत की। 

तब तक इनके दोनों बेटे पीयूष व आयुष भी समझदार हो गए, ओर अपनी पढ़ाई व स्कूल के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझने लगे।

आयुष ओर पीयूष दोनों ने इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त की। ओर पीयूष विदेश में जा कर नौकरी करने लगे थे।

अब सब कुछ सही होने लगा ही था। 

कि 2015 के समय नीलम को कैंसर हो गया। उस समय फिर परिवार ने एक बार आर्थिक व मानसिक रूप से परेशानीयों का सामना किया। लगातार इलाज, शारीरिक तकलीफ़देह कष्ट के बाद इनकी बीमारी से लड़ने की हिम्मत की वजह से ये कुछ सालों में कैंसर से जीत गई। 

ओर इनकी बीमारी के वक्त स्कूल के संचालन की जिम्मेदारी का निर्वाह आयुष कर रहे थे। पर आयुष का अकेले घर, परिवार, स्कूल सब कुछ संभाल पाना मुश्किल हो रहा था। समस्याएं आने लगी तब इनके बड़े बेटे पीयूष ने विदेश से आकर आयुष के साथ मिलकर सब कुछ व्यवस्थित किया। दोनों भाईयों ने मिलकर स्कूल के संचालन की जिम्मेदारियों को बेहतरीन रुप से निभाया। 

उसी साल 2015 में इन्होंने आईटीआई सेंटर की भी शुरुआत की। जिसको इलेक्ट्रिशन एंड डीजल मैकेनिक डिप्लोमा की मान्यता प्राप्त है। फिर अब नीलम की मेहनत और दोनों बेटों की कोशिशों की बदौलत उनकी संस्था का सफलता पूर्वक संचालन हो रहा हैं। 

जिसमें नीलम जी का मार्गदर्शन सर्वोपरि होता है। 

नीलम ने जो अपने जीवन में परिस्थितियाँ चाहे वह बीमारी हो या स्कूल संचालन में परेशानी हो ,उससे उन्होंने बहुत कुछ सीखा और अपने बच्चों को सिखाया है। जिस तरह वे शुरुआती दौर में आर्थिक रुप से परेशान रही, फिर स्थिति ठीक होने के बाद वे बीमारी से लड़ने की हिम्मत रखी यह वाकई संघर्ष की गाथा है। 

आज भी नीलम स्कूल जाती है, 

व सभी कामकाज को सुचारू रूप से करती है। 

वे बताती है, कि अपनी आत्मशक्ति की वजह से ही वे बीमारी से लड़ने में सक्षम हो सकी है। हिम्मत ना हारना उनके स्वभाव में है। वे हमेशा सही बदलाव लाने की मानसिकता का समर्थन करती है। वे जो भी स्थिती से जूझी है, उस दौरान उन्होंने सभी को हौंसला दिया। उतार-चढ़ाव के साथ उन्होंने अपने बच्चों को उच्च संस्कार दिए। 

बच्चों को हर परिस्थिति का सामना करने की हिम्मत दी है। 

स्कूल में भी नीलम का सभी के साथ पारिवारिक माहौल है, सब इनके समर्पण के कायल है, सभी इनसे अपने मन की बात बताकर, इनके विचार विमर्श को तवज्जो देते हैं। 

भविष्य में ये अपने स्कूल को ओर ज्यादा बेहतर रुप देना चाहते हैं, व आगे जाकर ओर मान्यताओं को प्राप्त कर शिक्षा के क्षेत्र योगदान देना चाहती हैं। 

सभी को अच्छी शिक्षा प्राप्त हो सके यही इनकी तब से अब तक की भावना रही है। आगे भविष्य में जाकर ये पैरामेडिकल और नर्सिंग की शिक्षा देने के लिए मान्यता प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं। जिससे रतलाम व उस क्षेत्र के विद्यार्थियों के लिए यह लाभप्रद होगा, कहीं बाहर दुसरे शहरों में ना जाकर अपने ही शहर में ही नए कोर्स की पढ़ाई उपलब्ध होगी।

More from author

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Related posts

Latest posts

जयपुर में साहू की चाय, जिसका अनोखा स्वाद लेने मुख्यमंत्री, मंत्री, सेलिब्रिटी सभी आते हैं, क्या है, चाय में खास – साहू की चाय

चाय!  चाय का नाम सुनते ही याद आ जाती है, छोटी-सी चाय की दुकान, उबलती हुई चाय, जिसके स्वाद की महक आसपास के वातावरण को...

डिप्रेशन को हराकर, कैसे काॅमेडी किंग बने इंदौरी रंजीत भिया – रंजित भिया

आज इंटरनेट के युग में जिस तरह से यूट्यूब का इस्तेमाल करके यूट्यूबर प्रसिद्धि पा रहे हैं, उन्हीं में से एक है। रंजीत कौशल...

आर्थिक स्थिति, फिर कैंसर से जीतकर नीलम कैसे कर रही है, शैक्षणिक संस्थान का संचालन – नीलम शर्मा

ऐसा कहा जाता है, कि शिक्षा ऐसा धन है, जो हमेशा हर समय काम आता है। जितना इस धन को जितना बांटा जाता है,...

ताजा खबरों से अपडेट रहना चाहते हैं ?

हमें आपसे सुनना प्रिय लगेगा ! कृपया अपना विवरण भरें और हम संपर्क में रहेंगे। यह इतना आसान है!