जिस बेटी के सपनों को पूरा करने के लिए उसके पिता ने साथ दिया हो, तब समाज की कोई भी बंदिशें, उस बेटी की उड़ान को नहीं रोक सकती है।
हम बात कर रहे हैं, पूजा जाट जी की
जिन्होनें अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया है, चाहे वह आर्थिक रुप से हो, या परिवार में माँ के देहांत के बाद, या फिर समाज में अपने खेल को लेकर हो ।
आज भी समाज यहीं मानता है, कि लड़कियों का खेलना व बाहर अकेले जाना ठीक नहीं है, पर फिर भी पूजा के पिता ने आत्मविश्वास रखकर अपनी बेटी को खेलने के लिए हमेशा प्रोत्साहित किया है।
इन्हीं कारणों से आज पूजा को मध्यप्रदेश की दंगल गर्ल के नाम से जाना जाता है | पूजा के नाम अब तक 10 नेशनल मेडल तथा 2 इंटरनेशनल मेडल है। पूजा ने जब कुश्ती खेलना शुरु किया फिर उन्होंने देश विदेश में हिस्सा लिया और आज उन्हें एशिया गेम्स में गोल्ड मेडल, ओर सिल्वर मेडल प्राप्त हुए हैं। जिनमें वे मेडल कुछ इस तरह है, जूनियर एशिया रेसलिंग चैम्पियनशिप ब्रोंज मेडल, खेलो इंडिया चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल तथा, खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में गोल्ड मेडल प्राप्त किया। व वर्ल्ड चैम्पियनशिप में भी भाग लिया। ऐसे कई मेडल इन्हें प्राप्त हुए।
पूजा जाट,
इनका जन्म खातेगांव (देवास मध्यप्रदेश) के पास एक छोटे से गांव बछखाल में 1 मार्च सन् 2001 को हुआ।
इनके पिता के पास थोड़ी सी जमीन है, जिसमें वे खेती का काम करते हैं, तथा निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में आर्थिक स्थितियों से जूझते हुए इनका बचपन बीता, प्राथमिक शिक्षा इनके गांव के ही एक सरकारी विद्यालय से पढ़कर हुई। उस वक्त इनकी आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी।
लगभग जब ये 12 वर्ष की थी, तब इनकी माताजी का देहांत हो गया था। इतनी कम उम्र में माँ का निधन हो जाना, इनके लिए सबसे बड़ी दुखद घटना थी। माँ के देहांत के बाद छोटी उम्र में घर परिवार की जिम्मेदारी इनके नाजुक कंधों पर आने लगी थी।
दो छोटे भाईयों को संभालना, स्वयं स्कूल जाना, पढ़ाई करना, और घर के काम में भी पिताजी की सहायता किया करती थी। इनके चाचाजी भी घर के काम में इनका बहुत सहयोग किया करते थे।
जिस तरह सभी स्कूलों में खेलकूद होते हैं, उसी तरह इनके स्कूल में भी खेल के आयोजन हुआ करते थे।
सन् 2015 के समय इन्होंने एक दौड़ प्रतियोगिता में भाग लिया, जिसमें ये प्रथम आई।
तब इन्हें लगा कि, क्यों ना इस ही खेल को अपना भविष्य बनाया जाए। ओर फिर ये लगातार दौड़ की प्रेक्टिस करती रही, सुबह जल्दी 4 बजे उठकर घर के काम करना और अपने गांव से खातेगांव आकर प्रेक्टिस करना, यही सब रोज की दिनचर्या थी। पूजा ने ठान लिया था, कि अब चाहे जो कुछ भी हो, पर खेल में ही अपना भविष्य बनाना है।
इसके साथ ही प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती रही, जिसमें जिला स्तरीय और संभाग स्तरीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया ओर विजेता रहीं। पूजा नेशनल रनिंग एथलीट की तीन बार विजेता भी रही।
इन्होंने अपने खेल के साथ घर की भी पूरी जिम्मेदारी निभाई, और उस समय तक परिवार में आर्थिक संकट का दौर चल रहा था, जब ये कक्षा 12वीं में आ गई थी, तब भी हालात वैसे ही थे। पर इनकी सबसे बड़ी हिम्मत इनके पिताजी रहे,जिन्होंने समाज की बातों को अनदेखा कर सिर्फ अपनी बेटी के सपनों को पूरा करने का प्रयास किया। और कम आय में भी अपनी बेटी के सभी सपनों को पूरा किया।
एक बार जब पूजा ग्राउंड पर प्रेक्टिस कर रही थी। तब उन्हें एड़ी में चोट लग गई, ओर फिर इनके कोच सर के समझाने के बाद इन्होंने ने एथलीट गेम छोड़ दिया।
और सन् 2016 में पूजा ने कुश्ती में जाने का मन बना लिया। सबसे पहले तो इन्होंने कुश्ती के ट्रायल में भाग लिया, ओर भोपाल की कुश्ती एकेडमी में इनका चयन हो गया, तब तक ये पहलवानी से अनजान थी, इन्हें कुश्ती की कोई ज़मीनी जानकारी नहीं थी।
कुछ समय तो इनको कुश्ती को समझने में ही बीत गया। इनको शुरुआत में काफी मुश्किलें हुई।
कई बार परिवार की आर्थिक स्थिती को देखकर इनका मनोबल टूट जाया करता था। और इनको लगता था, कि पिताजी सकंट में है, इन्हें ये सभी छोड़कर कहीं नौकरी कर लेना चाहिए। जिससे घर पर आर्थिक मदद मिल सके।
जब ये बात इन्होंने इनके पिताजी को बताई, तब उन्होंने कहा कि, तुमने अब तक जितनी मेहनत और हिम्मत की है, वहाँ से वापस लौट कर आना गलत है। फिर पूजा अपने पिताजी की बातों को मानकर वापस प्रेक्टिस में जुट गई।।
तब पूजा पहलवानी के खानपान के तरीकों से अंजान थी। यह सभी सीख ही रही थी, और अच्छे से कुश्ती भी खेलने लगी थी। इसी दौरान इन्हें चोट लग गई ओर इसी वजह से लगभग छः महीनों के लिए कुश्ती से दूर हो गई।
जब फिर पूरी तरह से ठीक होकर इन्होंने अखाड़े में वापसी की, उस समय से इन्होंने बहुत प्रेक्टिस की, फिर धीरे-धीरे प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरु किया।
ओर जब इन्होंने पहली कुश्ती खेली तब ये हार गई, तो उस दौरान हिम्मत हारने लगी, लगने लगा कि कुश्ती में इनका भविष्य कुछ नहीं है। वापस घर चले जाना ही ठीक होगा। ओर इन्होंने सोचा कि वहीं कोई नौकरी कर अपना भविष्य बनाना सही रहेगा। पर अगले ही पल ये लगा कि, एक बार ही तो हार हुई है, अगली बार अधिक मेहनत करके जरुर जीत जाऊंगी, फिर आगे जाकर घर परिवार के लिए भी तो कुछ करना है।
जितनी पूजा मेहनत किया करती थी, उन्हें उस तरह की डाइट नहीं मिल पा रही थी, क्योंकि डाइट का खर्च अधिक होता है ओर घर की स्थिति वैसे ही नाजुक थी, फिर भी ये मेहनत पर लगातार ज्यादा ध्यान दे रही थी। ओर जब ये दंगल बाहर खेलने जाने लगी, तो तब वहां से जो जीत की राशि प्राप्त होती थी, जिससे वे अपनी डाइट का खर्च निकाल लिया करती थी।
सन् 2018 से इनकी जीत का शुभारम्भ हुआ, नेशनल (यूनिवर्सिटी) लेवल पर इन्होंने ब्रोंज मेडल जीता। उसी साल सब जूनियर में ब्रोंज मेडल हासिल किया। उसी के बाद सन् 2019 के सत्र में जूनियर नेशनल सिल्वर मेडल जीता।
इनकी मेहनत व सफलता के साथ इनके घर की स्थिति में भी परिवर्तन आने लगे थे, और वे लोग जो इनके खेलने पर सवाल उठाते थे, वही आज इन पर गर्व महसूस करते हैं।
फिर इंडिया खेल के लखनऊ केम्प में एशिया के लिए ट्रायल हुआ, जिसमें इनका सिलेक्शन हो गया, और यह प्रतियोगिता थाईलैंड बैंकाॅक में जुलाई 2019 में आयोजित हुई इसी एशिया चैम्पियनशिप में इन्होंने ब्रोंज मेडल जीता। और अंडर 23 चैंपियनशिप में भी ब्रोंज मेडल प्राप्त किया।
उसके बाद ही इसी साल जूनियर वर्ल्ड चैम्पियनशिप में भाग लिया यह प्रतियोगिता यूएसए (पालिन, स्टोलिया) में हुई। जिसमें इन्होंने हिस्सा लिया व 5वीं रैंक प्राप्त हुई।
जिस समय ये कुश्ती में भारत का प्रतिनिधित्व करती हैं, तब इन्हें भारत की बेटी होने पर गर्व महसूस होता है। इनकी जीत का सिलसिला लगातार जारी है, जिसमें इन्होंने सन् 2020 में खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी लेवल पर गोल्ड मेडल प्राप्त किया। उसके बाद सीनियर चैंपियनशिप में ब्रोंज मेडल प्राप्त हुआ।
इसी के बाद जूनियर नेशनल चैम्पियनशिप में फिर ब्रोंज मेडल मिला।
पूजा ने कुश्ती के साथ ही अपनी पढ़ाई को भी जारी रखा,ओर इस समय इनका ग्रेजुएशन चल रहा है।
पिछले साल ही पूजा शादी के बंधन में बंधी है।
पूजा बताती है, इनके ससुराल पक्ष में सभी ने इनके खेल को समझा व इनके उज्जवल भविष्य के लिए सभी साथ दे रहे हैं, सबसे ज्यादा इनके पति श्री वीरेंद्र जी गुलिया ने इनका हर तरह से साथ दिया हैं, पूजा अपनी सफलता का सम्पूर्ण श्रेय अपने पिता और पति को देती हैं, यदि इन दोनों का साथ नहीं होता तो ये आज सफलता के इस मुकाम पर नहीं होती।
इनके पिता श्री प्रेमनारायण जी जाट ने इन्हें तब से अब तक यहीं समझाया है, कि जिस तरह से उन्होंने किसी की बात ना सुनकर इन्हें आगे बढ़ाया है। उसी तरह तुम भी किसी से मत हारना। हमेशा जीतना ओर, सफलताओं को प्राप्त करना।
अब पूजा भविष्य में भारत की तरफ से ओलिंपिक का हिस्सा बनना चाहती है। और भारत के लिए गोल्ड लाने की तैयारी कर रही है।हम पूजा के सुनहरे भविष्य व इस सपने के लिए कामना करते हैं।