एक बात अक्सर कही जाती है, कि आप किसी शहर गए और वहाँ के जायके या मिठाई का स्वाद नहीं लिया तो आपका उस शहर जाना ही व्यर्थ माना जाता है।
यही बात पंजाब के फाजिल्का जिले के लिए चरितार्थ है,यदि आप फाजिल्का गए है, तो वहाँ पाकपटृनियां दी हट्टी के तोशों का स्वाद लेना जरूरी माना जाता है।
श्री मुंशीलाल जी ग्रोवर ने लगभग सन् 1949 के करीब पंजाब के फाजिल्का में एक बहुत छोटे स्तर पर, एक छोटी सी मिठाई की दुकान की शुरुआत की आर्थिक रूप से कमजोर होने की वजह से उन्होंने बहुत कठिनाइयों के बीच संघर्ष किया, उन दिनों परिवार ने रहने के लिए भी परेशानी उठाई, कई मुश्किलों का सामना किया, जिसमें कुछ विकट परिस्थितियों के बीच भी रहे, बाद में एक मंदिर में दो कमरे का मकान किराये से लिया, और वहाँ रहना शुरु किया।
फिर श्री मुंशीलाल जी ग्रोवर ने फाजिल्का में एक दुकान किराए पर ली, और पाकपटृनियां दी हट्टी की नींव रखी, हालात उस समय बहुत खराब और नाजुक थे, साथ परिवार व बच्चों की जिम्मेदारियाँ भी थी।
तब उन्होंने दुकान के साथ ही किसी के घर शादी, ब्याह और अन्य कार्यक्रमों में जाकर मिठाई और रसोई बनाने की शुरूआत कर दी थी। जिससे परिवार में आर्थिक मदद मिलती थी।
उनके साथ उनके घर के बड़े बच्चें भी मदद किया करते थे। उनके साथ मिठाई बनवाने और रसोई बनवाने जाते थे।
ऐसा ही दौर कुछ साल चलता रहा, पाकपटृन से आने की वजह से ही दुकान को नाम पाकपटृनियां दी हट्टी नाम दिया गया, तब तक दुकान भी ठीक-ठीक चलने लगी थी।
दुकान पर बनने वाली मिठाईयों में विशेष तौर पर मठरी, बूंदी, बर्फी, शक्करपारे,बालूशाही और तोशे से शुरुआत की।
पाकपटृन में तोशे मैदे के बनते थे, पर श्री मुंशीलाल जी ग्रोवर ने बदलाव कर मावे के तोशे इजाद किए, जिसके स्वाद के चर्चे अब पूरे देश में होते हैं। यह एक पारंपरिक पंजाबी मिठाई है, जिसका स्वाद पीढ़ी दर पीढ़ी बरकरार हैं।
और समय के साथ आसपास के शहरों में फिर पूरे पंजाब और अब पूरे देश में इनके पाकपटृन के तोशे प्रसिद्ध होते गए और इनकी पहचान ही तोशे वालों से होने लगी।
जितनी मेहनत की उस मेहनत का फल रहा, कि हालातों में धीरे-धीरे परिवर्तन आने लगे, और इन्होंने तब तक अपना घर, खुद की दुकान और गोडाउन खरीद लिया था। और घर-घर जाकर मिठाई और रसोई बनाने का काम भी तब तक बंद कर दिया था।
वक्त के साथ अब जिम्मेदारी दूसरी पीढ़ी पर आ गई थी। जिसमें श्री मुंशीलाल जी ग्रोवर के पाँचों बेटों ने दुकान व घर परिवार की जिम्मेदारी ले ली।
पहले तो दुकान पर मिठाई और सभी प्रकार के नमकीन सामग्री भी ये लोग स्वयं ही बनाया करते थे। दिन रात लगातार सभी मिलकर काम किया करते, और दुकान भी संभालते थे। फिर इस पीढ़ी ने भी बकायदा जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन किया
और लगभग सन् 1971 में एक और प्रतिष्ठान की स्थापना कर दी, व्यवसाय और तोशे की प्रसिद्धी को आगे बढ़ाते चलते गए, आगे चलते-चलते इन सभी भाईयों के बच्चों ने भी समय के साथ दुकानदारी और व्यवसाय की जिम्मेदारी को समझा और व्यवसाय में सम्मिलित होने लग गए।
उस समय के दौर से आज के दौर तक भी लोगों ने नकल करके तोशे बनाने की कोशिश की और करते रहे, पर स्वाद और शुद्धता के मामले में कहीं से कहीं तक कोई बराबरी नहीं कर सके, और इनके व्यवसाय पर कोई फर्क नहीं पड़ा।
क्योंकि इनके बुजुर्गों ने अथाह मेहनत करके, एक सोच की स्थापना की, हलवाई से लेकर दुकान तक का सफर तय किया, इन्होनें व्यापार में कई उतार – चढ़ाव को देखा अच्छे और बुरे हालातों का सामना किया, खुद घंटों – घंटों मिठाईयों को अपने हाथों से बनाया है।
कम कर्मचारी होने की वजह से सभी भाईयों ने खुद भी दुकान का सभी काम किया है, किसी ने गोडाउन संभाला, तो किसी ने ग्राहकों को संभाला है, अपने हाथों से समोसे बनाएं, छोले – पूरी सब बनाया ओर सब ने मिलकर व्यवसाय को इन बुलंदियों तक पहुंचाया है। और देखे तो स्वाद में कुछ बदलाव आज तक जरा सा भी नहीं हुआ।
इनके बुजुर्ग आज भी आगे वाली पीढ़ी को बता कर गए हैं, कि व्यवहार से ही व्यापार चलता है, जितना अच्छा व्यवहार होगा, व्यापार उतना ही सफल होगा।
इनके तोशों की एक विशेषता है, तोशे,वैसे तो मैदे के बनते हैं पर इसमें मावा और पनीर भी मिलाया जाता है, और एक विशेष खास सामग्री भी स्वाद के लिए मिलाई जाती है, जिसका राज सिर्फ ग्रोवर परिवार के पास ही है, तब से अब तक वो स्वाद का राज बस राज ही है, लगतार यह राज तीसरी और अब चौथी पीढ़ी के पास सुरक्षित है।
बात यदि स्वाद, क्वालिटी और व्यवहार की हो तो उसके जरिए ही पाकपटृनियां दी हट्टी की फाजिल्का जिले में तीन और दुकानें हो चुकी है, जिनको अब तीसरी और चौथी पीढ़ी मिलकर चला रहे हैं। चौथी पीढ़ी के बच्चे जो उच्चशिक्षा प्राप्त कर चुके है, अब वे भी व्यवसाय में शामिल होकर प्रतिष्ठान को आगे बढ़ा रहे हैं।
और अब नई-नई जगहों से ने नए-नए स्वाद के जायकों को लोगो तक पहुंचानें की कोशिश रहती है, कुछ ना कुछ नया बनाने का प्रयास जारी रखते हैं।
श्री राजन जी ग्रोवर से बातचीत में वे बताते हैं, कि वर्तमान की स्थिती में भारत के लगभग हर शहर में तोशे आर्डर से भेजते हैं, रोज लगभग 15 शहरों में आर्डर भेजते हैं। साथ ही विदेशों में भी बढ़ती मांग के साथ तोशे लगातार भेजे जा रहे हैं।
तोशों में पहले तो सिंपल तोशे ही थे, पर समय के परिवर्तन के साथ, अब सिंपल तोशे से लेकर शुगर फ्री तोशे, शुद्ध घी वाले तोशे, चाॅकलेट तोशे, और नारियल तोशे बनते हैं, जो लोगो को बेहद पसंद आते हैं।
कहा जाता है, कि व्यवहार से ही व्यापार चलता है, आज इनकी दुकान भी नियमों पर ही चलती है और यह खुद से बढ़कर दुकान को मानते हैं।
इतना बड़ा परिवार और आज लगातार तीसरी और चौथी पीढ़ी का साथ काम करना, सामंजस्य, सबका तालमेल इनके सफल व्यवसाय की नींव है।
अब इनके परिवार के युवा नई-नई तकनीकों, मशीनों और आधुनिकता के जरिए अपने पुश्तैनी व्यापार को देश-विदेश में पहुंचाने की सोच रखते हैं। तोशों को अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सकेगा, उसकी तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है।