किसी भी व्यवसाय या उद्योग की सफलता का श्रेय किसी एक को ना जाकर हर उस व्यक्ति को जाता है, जो उसका हिस्सा है, ऐसा मानना है श्री पीयूष नीमा जी का।
हम बात कर रहे हैं, पीयूष नीमा जी की जो उज्जैन शहर के एक जाने माने उद्योगपति है, शहर की टेक्सटाइल इंडस्ट्री में इनकी कम्पनी श्री द्वारकेश फैब्रिक ओर श्रीगणेश फैब्रिक का एक स्थापित नाम है।
सन् 1959 के समय पीयूष जी के पिताजी श्री मोहनलाल जी नीमा ने श्रीगणेश फैब्रिक की शुरुआत की,
उसको सकुशल संचालित किया, फिर उसकी सफलता के बाद सन् 1984 में इन्होंने श्री द्वारकेश फैब्रिक की नींव रख दी, जिनका संचालन आज तक सफलतापूर्वक हो रहा है, जिसका संचालन अब पीयूष कर रहे हैं।
पीयूष नीमा जी जिनका जन्म 17 दिसंबर सन् 1974 को उज्जैन में ही हुआ, चूंकि परिवार व्यवसाय में रहा तब इनका मन भी वही लगा रहता था, बचपन से ही यह अपने व्यवसाय को सभांल कर उसे आगे बढ़ाने की चाह रखते थे, ओर आज भी रखते हैं।
पर बचपन मेें पढ़ाई से ज्यादा जरुरी कुछ नहीं होता है, बस फिर पीयूष अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गए, एम. काॅम. की डिग्री प्राप्त की।
जब पीयूष समझदार होने लगे थे, लगभग कक्षा 12वीं के दौरान, तभी से ये अपने पिताजी के साथ उद्योग जाया करते थे, वहाँ जाकर काम सीखते थे, काम किया करते थे, कर्मचारियों से बातें किया करते थे, मशीनों को चलाना सीखते थे, मशीनों का रखरखाव भी सीखते थे।
क्योंकि भविष्य में आने वाली सभी जिम्मेदारियों को लेने के लिए इन्हें पूर्ण रूप से तैयार जो होना था।
अब इनमें उद्यमियों वाले गुण आने लगे थे, काॅलेज के दिनों में इन्होंने ज्यादा समय उद्योग में बिताना शुरु किया दिया था, ओर सीखने की शुन्य से शुरुआत कर भविष्य की नींव रख दी थी।
सभी कार्यों को जब सीख गए, उसके बाद ये अपने पिताजी को पूरे समय सहयोग देने लगे थे।
उस समय पाॅवर लूम हुआ करते थे, समय के साथ बदलाव किया, फिर प्रोसेसर डाला, प्रोसेसर हाउस बनाया।
फिर धीरे-धीरे सभी यूनिटों को अलग-अलग किया, ओर काम ज्यादा होने लगा था, क्योंकि मशीनों की गति बढ़ गई थी।
जो भी नए-नए कर्मचारी आते हैं, पीयूष उनको काम सीखाते है, उन पर ध्यान देते हैं, उनके हर काम पर बारीकियों से नजर रखते हैं, क्योंकि बिना नजर रखे किसी से काम करवाना मुश्किल होता है।
जब इन्होंने व्यापार में आने का मन बना ही लिया था, तो अब पीयूष के लिए मार्केट में अपना नाम स्थापित करना चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि इनके उद्योग जो पहले ही सफल है, उसी की गुणवत्ता बरकरार करके सुनिश्चित करना अब इनकी जिम्मेदारी थी।
माल को बेचना, उसके बाद बड़े-बड़े ग्राहकों से सम्पर्क करना, उनसे सबंध स्थापित करना अब इनका काम था।
नए शहरों में जा जाकर मार्केट को समझना शुरु किया, व्यापारीयों से बात की, व्यापार का विस्तार किया ओर आज समूचे भारत में इनका फैब्रिक सप्लाई होता है, खासकर नार्थ इंडिया तरफ।
अनुभव से ही सबकुछ सीखा जा सकता है, बाजार में होने वाले हर बदलाव को समझना जरूरी है, मांग की पूर्ति पर ध्यान देना ही सफल उद्यमी के गुण है।
व्यवसाय में उतार ओर चढ़ाव तो सामान्य सी बात है, उसी को समझना आवश्यक होता है, जिससे आगे की नीति लागू करने में आसानी होगी।
पीयूष ने अपनी टीम को बहुत अच्छे से मैनेज किया है, जिससे उनको बहुत सहयोग मिलता है, हर कर्मचारी अपनी जिम्मेदारी के साथ काम करता है।
व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए पीयूष हमेशा कोशिश करते हैं, भविष्य में ये अपने बच्चों को भी व्यवसाय मैं लाना चाहते हैं, पर उनकी सहमति के साथ।
ये चाहते हैं, कि बच्चे अपनी इच्छाओं को पूरा करें, दुनिया देखे, दुनियादारी सीखने के साथ-साथ , अपने सपनों को पूरा करें।
पीयूष बताते हैं, कि जब वे अपने पिता से काम सीख रहे थे, तब उन्हें गलती करने पर डांट भी मिलती थी, तो सही समय पर प्रोत्साहन भी मिला करता था, आज भी पिताजी का वही स्वभाव व मार्गदर्शन पहले के जैसा ही है
मल्टीपर्पज, कोर इंडस्ट्री में जाने का इनका सपना है, जो जल्दी ही साकार होने वाला है, जिसके लिए ये मेहनत कर रहे हैं।
बाजार में होने वाले परिवर्तन एक सिक्के के ही दो पहलू हैं, जिसमें कब क्या हो पता नहीं, पर मार्केट की इकोनॉमिक स्टडी करना बहुत जरुरी होता है, जिससे हानि की संभावना कम हो जाती है।
पीयूष का कहना है कि, लाभ – हानि को ही सबकुछ मानकर नहीं चला जा सकता है। यदि व्यापार में लाभ है, तो हानि होगी, यदि हानि है, तब लाभ भी होगा ही होगा, जो तय है।
उद्योगपति कभी स्वयं को सोचकर नहीं चल सकते हैं, क्योंकि इनसे इनका परिवार ही नहीं, अपितु हर एक कर्मचारी का परिवार इनसे जुड़ा होता है, जिनकी रोजी-रोटी इनके व्यवसाय पर ही निर्भर करती है।
व्यापार में जब ज्यादा सोच विचार करने में जब समय लगाया जाता है, तब कई बार फैसले गलत भी हो जाते हैं। हर बुराई के साथ कुछ ना कुछ अच्छाई जरुर छुपी होती है, यही इनका मानना है।
आजकल जो फैशन का दौर चल रहा है, वहाँ रोज बाजार में कुछ ना कुछ सीखने को जरुर मिल जाता है, नई टेक्नोलॉजी जो आ रही है, काम को सरल करने के साथ समय की अधिक बचत कर रही है।
इनके पिताजी ने जो इन्हें मार्गदर्शन दिया है, उस पर ये सदैव अमल करते हैं, कि बिना प्रतियोगिता के व्यवसाय में जान नहीं होती है।
जितनी अधिक प्रतियोगिता होगी, उतना ही स्वयं को निखार सकते हैं।
उतनी ही अच्छी क्वालिटी ग्राहकों को दे सकते हैं, उसके जरिए ही बाजार में अच्छे सबंध स्थापित कर सकते हैं।
जितने अच्छे बाजार में व्यवहार होंगें, उतना ही व्यवसाय सफल होगा, लेन- देन का व्यवहार हमेशा साफ रखना चाहिए।
व्यवसाय में ईमानदारी जरुरी है, जितना अच्छा माल ग्राहकों को मिलेगा, उतना ही बाजार में नाम बनेगा
उससे अच्छी साख स्थापित होगी।
भविष्य में जो बाजार मैं होने वाले बदलाव के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए, जिससे कि हर परिस्थिति के लिए स्वयं को तैयार रख सकते हैं।