डॉक्टर को तो वैसे भगवान का दुसरा रूप ही माना जाता है, किंतु अब जो कोरोना काल के समय से जिस विश्वास के साथ विश्वजगत ने आयुर्वेद की शक्तियों को माना है। यह हम भारतीयों के लिए गर्व की बात है।
धर्मार्थकाममोक्षाणाम् आरोग्यं मूलमुत्तमम्।
रोगास्तस्यापहर्तारः श्रेयसो जीवितस्य च॥
जिस तरह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का मूल (जड़) उत्तम आरोग्य ही है। अर्थात् इन चारों की प्राप्ति हमें आरोग्य के बिना नहीं सम्भव है।
हम बात कर रहे हैं, एक ऐसे ही आयुर्वेदिक डॉक्टर अजय सोनी जी की जिनकी पिछली तीन पीढ़ियों से ही आयुर्वेद और आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है।
इन्दौर-उज्जैन के मध्य सांवेर तहसील है, जहांँ डॉ. अजय सोनी का जन्म 8 अगस्त सन् 1985 को हुआ।
बचपन इनका सांवेर में ही बीता प्रारंभिक शिक्षा इनकी यहीं सांवेर में हुई, और कक्षा 12वीं तक पढ़ाई इनकी सांवेर में हुई है। ये बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के धनी रहे हैं, पढ़ाई में बहुत अच्छे विद्यार्थियों में शामिल रहे हैं।
बचपन से ही पारिवारिक माहौल में इन्हें पढ़ाई के साथ ही घर परिवार में अपने दादाजी ओर पिताजी को आयुर्वेद,और जड़ी बूटियों के साथ काम करते एवं मरीजों की सेवा करते हुए देखा है। तब यह ध्यान लगाकर आयुर्वेदिक चिकित्सा को ध्यान से देखते थे, और उसे समझने की कोशिश करते रहते थे। बचपन से ही इनका लगाव और झुकाव आयुर्वेद की तरफ ज्यादा रहा है, इनकी चाहत बचपन से ही डॉक्टर बनकर सेवा करने की थी।
इनके परिवार में आयुर्वेद की शुरुआत डॉ. सोनी के परदादाजी स्व. कन्हैया गंगाराम जी सोनी ने की, जो उस समय के वैद्य हुआ करते थे। तब वे मरीजों का निःशुल्क इलाज किया करते थे, आर्थिक स्थिति उस वक्त अच्छी नहीं थी, पर सेवा को कर्म मानकर वे अपना अधिक से अधिक समय में आयुर्वेद के साथ ही जड़ी बूटियों के प्रयोग में व्यतीत करते थे।
और उन जड़ी बूटियों का सही तरीके से इस्तेमाल का उन्हें बहुत अच्छा ज्ञान हुआ करता था, उन्होंने तब आयुर्वेदिक दवाइयों से ही पीलिया और टाइफाइड जैसे अन्य जटिल रोगों का इलाज करना आरंभ किया।
इनकी बढ़ती ख्याती को देख उस समय स्व. कन्हैया लाल जी सोनी को देवास के महाराज कृष्णा राव जी पंवार द्वारा ताम्रपत्र से सम्मानित किया गया ओर ये ताम्रपत्र द्वारा सम्मानित वैद्य रहे हैं। जो उस समय की एक बहुत बड़ी उपलब्धि हुआ करती थी।
इनके बाद डॉ. सोनी के दादाजी
श्री जमनालालजी सोनी ने वैद्य की पढ़ाई आरम्भ की ओर (वैद्य विशारद्) है, फिर इन्होंने अपने पिताजी के साथ मरीजों की सेवा करने की सोच रखने लगे। समय चलता रहा और अब बदलाव के साथ ही लगभग सन् 1960 के समय में इन्होंने ग्रामीण क्षेत्र सांवेर में एक छोटे स्तर पर एक क्लिनिक की नींव रखी। जिसमें कम से कम शुल्क में मरीजों का इलाज करना शुरु कर दिया और धीरे-धीरे प्रदेश में एक सफल वैद्य के रुप में स्थापित होने लगे।
डॉ. सोनी को इनके दादाजी से ही जन सेवा, आयुर्वेद चिकित्सा की प्रेरणा मिलती रही है।
डॉ. सोनी के पिताजी श्री गोपालकृष्ण जी सोनी ने भी आयुर्वेद में पढ़ाई की और इन्हें (आयुर्वेद रत्न) की उपाधि प्राप्त हुई हैं। दादाजी के साथ ही इनके पिताजी ने लगभग सन् 1982 से अपने पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे, सेवा कार्य को संभालने की शुरुआत की और विश्वास के साथ सेवा की शुरुआत कर दी।
समय के साथ डाॅ. सोनी ने अपने पारिवारिक सेवा कार्य में जाने का मन बना लिया था, ताकि वे भी अपने बुजुर्गों की तरह ही सेवा कर सकें।
स्कूली शिक्षा के बाद डॉ. अजय सोनी ने BAMS की डिग्री भोपाल के आयुर्वेदिक काॅलेज (प. खुशीलाल शर्मा आयुर्वेदिक काॅलेज ) से प्राप्त कर ली, ओर वापस सांवेर आ कर लगभग सन् 2008 से मरीजों की सेवा का कार्य शुरु कर दिया।
अब डॉ. सोनी भी अपने पिताजी के साथ मरीजों का इलाज करने लगे,
रोज लगातार लगभग 8 घंटे मरीजों
को क्लिनिक पर देखते हैं। और टाइफाइड,पीलिया और अन्य जटिल रोगों का उपचार करते हैं। नए-नए प्रयोग करके नई आयुर्वेदिक दवाईयों को बनाने की कोशिश करते हैं, ताकि मरीजों को कम से कम खर्च में अच्छे से अच्छा इलाज किया जा सके।
डॉ. सोनी अक्सर बताते है, कि जब मरीज ठीक होकर आते है। और उन्हें बताते है, कि उन्हें पूरी तरह आराम है, वो स्वस्थ हो रहे हैं, यह सुनकर लगता है, कि भगवान का ही आशीर्वाद है, जो वे सभी की सेवा करने योग्य बने हैं।
मरीजों की सेवा को सर्वप्रथम कार्य मानते हैं। कई बार मरीजों को इतनी ज्यादा समस्याएं होती है, जिनका गहन विश्लेषण और निरंतर अभ्यास के द्वारा ही इलाज संभव हो पाता है।
जटिल से जटिल रोग जिनका निदान सिर्फ आयुर्वेद से ही संभव है, उनके सरल उपचार के लिए सदैव प्रयासरत रहना आवश्यक होता है।
डॉ. सोनी का कहना है, कि जैसे किसी भी बीमारी का इलाज एलोपैथी से होता है। तब मरीज को आराम जल्दी मिल जाता है, पर रोग को जड़ से खत्म आयुर्वेद के जरिए किया जा सकता है।
एलर्जी, इंफेक्शन, का सटीक इलाज आयुर्वेद से किया जा सकता है।
डॉ. सोनी का कहना है कि,
जिस तरह लोग कोविड के बाद आयुर्वेद पर ज्यादा विश्वास करने लगे हैं, जिस तरह कोविड के समय आयुर्वेद की अपनी एक खास भूमिका रही है। जिसमें रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में बहुत सहयोग किया है। जिसमें गिलोय, अश्वगंधा, तुलसी, हल्दी, मुलेठी और अन्य जड़ी-बूटियों ने बहुत सहायता की है, तथा सभी ने उसे अपनाया और पूर्ण विश्वास दिखाया है, इसी तरह आयुर्वेद में बड़ी से बड़ी बीमारीयों के इलाज उपलब्ध है, बस जरुरत है, तो विश्वास की।
डॉ. सोनी चाहते हैं, कि आने वाले समय में प्रदेश ही नहीं बल्कि समस्त भारत व देश विदेशों में वे आयुर्वेद का प्रचार-प्रसार करें। और कम से कम शुल्क में मरीजों की सेवा को निरंतर जारी रखे, एवं भविष्य में वे अपनी फार्मेसी की योजना का जो प्रारुप है, उसको साकार रुप देना चाहते हैं, और स्वयं के द्वारा बनाये गए आयुर्वेदिक फ़ार्मूलों पर काम करके मरीजों का बेहतर इलाज किया जा सके।
ये अपने बच्चों को भी आयुर्वेद के गुण व उपयोग बताते है, ताकि उनका भी लगाव आयुर्वेद के प्रति बना रहे व आगे चलकर भविष्य में वे भी अपने पारम्परिक सेवा के कार्य को निरंतर विकास की और अग्रसर करें।