हिंदुस्तानी शास्त्रीय नृत्य कला भरतनाट्यम एवं कथक  कि सेवा और प्रचार जीवन लक्ष्य है – रजनी महाराज

कलाकार वह है, जो कला को आकार दे। एक सच्चे कलाकार कि कला ही उसके लिए सम्पूर्ण सृष्टि बन जाती है। अब चाहे वह किसी बड़े घराने से जुड़ा हो, या अति साधारण परिवार से, एक कलाकार के सांचे में ढलने हेतु हर इंसान को बराबरी से अग्नि समान कठोर पथ पर चलकर खुद को तराशना पड़ता है। ऐसा मानना है, श्रीमती रजनी महाराज का। 

“आज हम बात कर रहे हैं, रजनी महाराज जी की जिनके विवाह के बाद ये कथक नृत्य सम्राट पद्म विभूषण पंडित बिरजू महाराज जी की पौत्रवधु बनी और वर्तमान में शास्त्रीय

समाज को और गहराई एवं सूक्ष्मता से अध्ययन कर रही हैं।” 

रजनी का जन्म १ अगस्त को दिल्ली में हुआ। तीन बहनों के परिवार में रजनी सबसे छोटी हैं और शुरु से ही नृत्य के प्रति निष्ठा एवं लगाव को देखकर उनके माता पिता ने, शास्त्रीय समाज से ना होते हुए भी, नृत्य सीखने का बढ़ावा दिया। 

रजनी ने लगभग १५ साल की उम्र में “भारतीय कला केन्द्र” में प्रवेश लिया। वहाँ इन्हें भरतनाट्यम गुरु जस्टिन मैक्कार्थी जी के सानिध्य में नृत्य कला प्राप्त हुई। साथ ही साथ श्रीमती प्रिया श्रीनिवासन जी के सानिध्य में शिक्षा एवं रंगमंच का अनुभव मिला। वे आज भी अपने गुरू जस्टिन मैक्कार्थी जी से जुड़ी हैं और उनसे निरंतर शिक्षा ग्रहण करती हैं। 

रजनी ने पद्मश्री शोभा दीपक सिंह के निर्देशन में नृत्यनाटिका – “कृष्णायन” में राधा के मुख्य पात्र को निभाया। देश विदेश में लगातार नृत्य की प्रस्तुति के साथ थियेटर और फिल्म भी करना जारी रखा। 

भरतनाट्यम की कला को पूर्णतम तरीके से सीखने व समझने कि चेष्ठा ने इन्हें प्रसिद्ध नट्टुवनार एवं गायक  श्री एलनगोवन गोविंदराजन से मिलवाया। उनके सानिध्य में रजनी, भरतनाट्यम में प्रयोग एक महत्वपूर्ण वाद्य, नट्टुवान्गम कि शिक्षा ग्रहण कर रही हैं। 

“फरवरी सन् २०१९ में रजनी का विवाह लखनऊ के कालका-बिंदादिन घराने की नौवीं पीढ़ी के उत्तराधिकारी पंडित बिरजू महाराज जी के पौत्र और पंडित जयकिशन महाराज जी के पुत्र श्री त्रिभुवन महाराज जी से हुई।”

विवाह के बाद रजनी, कथक जगत के कई दिग्गज कलाकारों के बीच, एकमात्र भरतनाट्यम नृत्यांगना हुईं। जिज्ञासु एवं सदैव ज्ञान कि वृद्धि हेतु रजनी ने अपनी सासू माँ के सानिध्य में कथक सीखना आरंभ किया। 

“विरासत ही है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ती चली जाती है।” 

जिम्मेदारी को अपनाकर चलना सबसे बड़ा दायित्व होता है और इनके परिवार की विरासत संभालना ही इनका सबसे बड़ा दायित्व है। इसे ये आशीर्वाद मानती है और स्वयं को भाग्यवान मानती है। 

दिसंबर सन् २०१९ में अपने पति श्री त्रिभुवन महाराज जी के साथ मिलकर कथक ओर भरतनाट्यम को मिलाकर इन्होंने “कथकनाट्यम” नृत्य एकेडमी को जन्म दिया जिसमें कथक ओर भरतनाट्यम का प्रशिक्षण संपूर्ण शुद्धता से दिया जाता है।

भारतीय संस्कृति से लगाव के चलते रजनी हमेशा से ही भारतीय नृत्यों के प्रति आदर महसूस करती रही हैं और “कथकनाट्यम” के अंतर्गत देश के भिन्न भिन्न शास्त्रीय नृत्यों के कई  प्रस्तुतिकरण का आयोजन भी किया है।

संस्कृति के प्रति अपनेपन से अपनी संस्थान में आने वाले बच्चों को शिक्षित करते हुए यही सीख देती हैं कि इस नृत्य कला को विरासत की तरह सहेज कर रखना अनिवार्य है ओर देश विदेश में भारतीय सभ्यता का प्रचार प्रसार बेहद महत्वपूर्ण है।

रजनी अपने जीवन के महत्वपूर्ण स्तम्भ अपने गुरू, पति और परिवार को मानती हैं जिनके पथप्रदर्शन से इनकी जीवन यात्रा को दिशा और लक्ष्य प्राप्त हुआ। इनके पति ने हमेशा इन्हें समझा व पूर्ण सहयोग किया और वे आज भी नृत्य की बारिकियों से इन्हें अवगत करवाते हैं। 

ये भविष्य में कथकनाट्यम को ही आगे बढ़ाना चाहती हैं, जिसके लिए वे पूरा समय व ध्यान देती हैं। इनका मानना है कि यदि किसी भी व्यक्ति को मन में कुछ सीखने का भाव है, तो उसे ह्रदय से अपने गुरू के प्रति समर्पित होना जरुरी होता है। बच्चों को मासूमियत के साथ सबकुछ सीखाना आसान हो जाता है और कला जगत में बिना लगातार अभ्यास के कुछ भी सम्भव नहीं है। 

कथकनाट्यम के इस अनोखे प्रयास के लिए रजनी महाराज जी को टीम अपनी पहचान की तरफ से हार्दिक शुभकामनाएँ व इनके संस्थान के बच्चे दुनिया में भारत का और अपने गुरुओं का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित करें ऐसी हमारी अभिलाषा है।

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